क्या सच और झूठ पहचानना आसान है? – डॉ. क्रिस स्ट्रीट की नज़र से
क्या आपने कभी सोचा है कि अगर कोई आपसे झूठ बोल रहा हो तो आप कैसे पहचानेंगे?
क्या आप उसकी आंखों में झांकेंगे? उसके चेहरे के हाव-भाव या शरीर की हरकतों पर ध्यान देंगे?
University of Huddersfield के डॉ. क्रिस स्ट्रीट का कहना है कि अगर आप इन तरीकों से झूठ पकड़ना चाहते हैं तो शायद आप गलत दिशा में सोच रहे हैं।
झूठ पकड़ने की आम गलतफहमियाँ
1. आंखों का संपर्क (Eye Contact)
आमतौर पर यह माना जाता है कि झूठ बोलने वाला इंसान आंखों में नहीं देखता।
लेकिन हकीकत यह है कि झूठा व्यक्ति जानता है कि लोग यही सोचते हैं। इसलिए वह ज़रूरत से ज़्यादा देर तक आंखों में देखेगा, जिससे आप असहज महसूस कर सकते हैं।
2. शरीर की हरकतें (Body Movements)
बहुत लोग मानते हैं कि झूठ बोलते समय लोग ज्यादा हिलते-डुलते हैं।
लेकिन सच इसके उलट है। झूठ बोलने के लिए हमें काफी सोचना पड़ता है, जिससे हम थोड़े ज़्यादा स्थिर (Still) हो जाते हैं।
3. आंख ऊपर घुमाना (Looking Up/Down)
एक और लोकप्रिय धारणा है कि दाएँ-बाएँ ऊपर देखने से पता चलता है कि व्यक्ति झूठ बोल रहा है।
लेकिन हाल के शोध बताते हैं कि यह धारणा पूरी तरह ग़लत है।
झूठ पहचानने का सही तरीका
डॉ. स्ट्रीट का कहना है कि झूठ पकड़ने का सबसे अच्छा तरीका है –
👉 किसी के कहे हुए शब्दों और बोलने के अंदाज़ पर ध्यान देना, न कि उनके चेहरे या शरीर पर।
झूठ बोलने वाले अक्सर शब्दों को दोहराते हैं।
उनकी भाषा में गंभीर सोच का दबाव झलक सकता है।
अगर आप ध्यान से सुनें, तो वाक्यों की संरचना और टोन से संकेत मिल सकते हैं।
Honest Baseline क्या है?
झूठ पहचानने की एक महत्वपूर्ण तकनीक है – Honest Baseline
इसका मतलब है कि पहले समझें कि व्यक्ति सामान्य स्थिति में (बिना तनाव, बिना दबाव) कैसा व्यवहार करता है और कैसे बोलता है।
अगर उसी व्यक्ति का वर्तमान व्यवहार उस पैटर्न से अलग लगे, तो यह शक करने की स्थिति हो सकती है।
ALIED Theory क्या कहती है?
डॉ. स्ट्रीट ALIED Theory पर भी प्रकाश डालते हैं।
इस सिद्धांत के अनुसार जब हम यह तय करते हैं कि कोई सच बोल रहा है या झूठ, तो हम अंधाधुंध अनुमान नहीं लगाते।
बल्कि हम अपने बीते अनुभवों और उपलब्ध जानकारी के आधार पर निर्णय करते हैं।
उदाहरण:
अगर कोई कहे कि वह पिछले हफ़्ते फ्रांस गया था और उसके पास फ्रांस की एक सेल्फी है, तो यह उसके सच होने का मजबूत सबूत है।
लेकिन अगर सबूत न हो, तो हमें अपने अनुभव और संदर्भ पर भरोसा करना पड़ता है।
निष्कर्ष
झूठ पकड़ना उतना आसान नहीं है जितना आमतौर पर लोग समझते हैं।
हमारे पास कोई जादुई फॉर्मूला या “Lie Detection Wizard” नहीं है।
👉 सबसे अच्छा तरीका यही है कि हम खुले दिमाग से, बिना पूर्वाग्रह के, सामने वाले की बातों और उनके अंदाज़ को सुनें और तुलना करें।
“अगर हमारी सटीकता सिर्फ 54% है, तो सिक्का उछालकर भी उतना ही सही अनुमान लग सकता है। इसलिए ज़रूरी है कि हम शोध आधारित तरीकों का इस्तेमाल करें।”
लेखक: डॉ. क्रिस स्ट्रीट (Reader in Cognitive Psychology, University of Huddersfield)
📝 हिंदी अनुवाद व प्रस्तुति: Arvindblog


0 टिप्पणियाँ