न्यूट्रिनो का इतिहास
न्यूट्रिनो, जिसे कई वैज्ञानिक “Ghost Particle” भी कहते हैं, हमारे ब्रह्मांड का सबसे रहस्यमयी और सूक्ष्म कण है। इसे फंडामेंटल पार्टिकल माना जाता है और आज भी वैज्ञानिक इसके रहस्यों को पूरी तरह नहीं सुलझा पाए हैं।
न्यूट्रिनो इतना रहस्यमयी क्यों?
न्यूट्रिनो इतना छोटा है कि यह एटम और मॉलिक्यूल के आर-पार बिना टकराए निकल जाता है। इसलिए इस पर एक्सपेरिमेंट करना बहुत मुश्किल होता है यह ऐसा ही है जैसे कोई उल्का पिंड हमारे सोलर सिस्टम से गुजर रहा हो क्योंकि जब कोई उल्का पिंड सोलर सिस्टम से गुजरता है तो उसकी किसी प्लेनेट से टकराने की संभावना कई लाख गुना कम हो जाती है क्योंकि हमारे सोलर सिस्टम में खाली जगह बहुत ज्यादा है इसलिए जब उल्का पिंड वहां से गुजरता है तब बहुत कम संभावना होती है कि वह किसी प्लानेट से टकराए वैसे ही जब न्यूट्रिनो किसी एटम से होकर गुजरता है तो वह उस एटम के कंपैरिजन में इतना छोटा होता है कि वह एटम की खाली जगह से बिना टकराए निकल जाता है न्यूट्रिनो हमारे ब्रह्मांड के फंडामेंटल पार्टिकल में आता है जो कि न्यूट्रल पार्टिकल होता है यानी कि इसके ऊपर कोई चार्ज नहीं होता है
हर सेकंड ट्रिलियन्स न्यूट्रिनो हमारी धरती और हमारे शरीर से गुजरते हैं, लेकिन हमें इसका एहसास तक नहीं होता।
वैज्ञानिक इसे डिटेक्ट करने के लिए कई दशक से संघर्ष कर रहे हैं, क्योंकि यह न तो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फोर्स से प्रभावित होता है और न ही स्ट्रॉन्ग न्यूक्लियर फोर्स से।
न्यूट्रिनो और स्टैंडर्ड मॉडल
जैसे पीरियॉडिक टेबल में तत्वों को रखा जाता है, वैसे ही फंडामेंटल पार्टिकल्स का भी एक चार्ट है जिसे स्टैंडर्ड मॉडल कहते हैं।
इसमें पार्टिकल्स को दो मुख्य वर्गों में बांटा गया है – फर्मियन और बोसोन।
न्यूट्रिनो, फर्मियन कैटेगरी के लेप्टॉन परिवार में आता है।
न्यूट्रिनो के तीन प्रकार होते हैं:
1. इलेक्ट्रॉन न्यूट्रिनो
2. म्यू न्यूट्रिनो
3. टाऊ न्यूट्रिनो
न्यूट्रिनो का जन्म
न्यूट्रिनो मुख्यतः बीटा डीके (Beta Decay) प्रक्रिया से पैदा होते हैं।
सूरज में होने वाले न्यूक्लियर फ्यूज़न,न्यूक्लियर रिएक्टर, और सुपरनोवा विस्फोट — ये सभी न्यूट्रिनो के बड़े स्रोत हैं।
न्यूट्रिनो की खोज का इतिहास
1930: वुल्फगैंग पॉली ने न्यूट्रिनो की कल्पना की, जब बीटा डीके में "गायब मास" का रहस्य सामने आया।
1956: फ्रेडरिक रेंस और क्लाइड कोवान ने पहली बार न्यूट्रिनो को डिटेक्ट किया और बाद में उन्हें नोबेल प्राइज मिला।
1960 से 2000 तक, वैज्ञानिकों ने इसके तीन प्रकार (इलेक्ट्रॉन, म्यू, टाऊ) को खोजा।
न्यूट्रिनो डिटेक्शन
न्यूट्रिनो को पकड़ना बेहद मुश्किल है।जापान का Super-Kamiokande डिटेक्टर (330 फीट गहरी खदान में बना विशाल टैंक) पानी में गुजरते न्यूट्रिनो से उत्पन्न चेरेंकोव रेडिएशन (नीली रोशनी) को डिटेक्ट करता है।
साउथ पोल पर बना IceCube Observatory बर्फ के भीतर न्यूट्रिनो की खोज कर रहा है।
भारत भी तमिलनाडु में अपना India-based Neutrino Observatory (INO) बना रहा है।
न्यूट्रिनो की रहस्यमयी खासियतें
न्यूट्रिनो अपना रूप बदल सकता है – यानी इलेक्ट्रॉन न्यूट्रिनो म्यू या टाऊ न्यूट्रिनो में बदल जाता है। इसे न्यूट्रिनो ऑस्सिलेशन कहते हैं।
यह लगभग प्रकाश की गति (Speed of Light) के बराबर गति से चलता है।
वैज्ञानिक मानते हैं कि न्यूट्रिनो से जुड़ी खोजें आने वाले समय में नई तकनीक और ब्रह्मांड के रहस्य खोलेंगी।
लगभग 100 साल से न्यूट्रिनो वैज्ञानिकों के लिए चुनौती बना हुआ है। हर दिन इसके बारे में नई-नई खोजें हो रही हैं। आने वाले समय में न्यूट्रिनो हमें डार्क मैटर, ब्रह्मांड की उत्पत्ति और ऊर्जा के नए स्रोतों के बारे में गहरी समझ देगा।




0 टिप्पणियाँ