दोस्तों आज में आपको गाथा वर्णन विधि के बारे में बताऊँगा। इस विधि को चरित्र लेखन विधि भी कहते हैं । यह दो प्रकार की होती है प्रथम प्रकार में अध्ययनकर्ता बालक या बालिकाओं के विभिन्न प्रकार के व्यवहारों का अवलोकन करता है और लिखता जाता है । इस प्रकार बालक के चारित्रिक व मानसिक विकास का लेखाजोखा तैयार करके बालक के आगामी विकास की दिशा का पता लगाया जा सकता है ।
इस विधि की विशेषता यह है कि :
( A ) अध्ययनकर्ता सुविधानुसार व्यवहार का निरीक्षण कर सकता है ।
( B ) प्रयोगशाला के कृत्रिम वातावरण से स्वाभाविक वातावरण में किया गया अध्ययन अपेक्षाकृत अधिक मौलिक होता है ।
इस विधि का दूसरा स्वरूप व्यक्ति द्वारा स्मृतियों के आधार पर अपने जीवन से सम्बन्धित अनेक घटनाओं का उल्लेख किया जाता है जिन्होंने उसके जीवन की दिशा बदली हो । महान पुरुषों द्वारा आत्मकथा लिखना इसी विधि का स्वरूप है। बहुत से व्यक्ति अपने जीवनवृत्त की डायरी बनाते हैं । इन डायरियों से व्यक्ति के चरित्र का पता लगाया जा सकता है। इस विधि के दोनो स्वरुपों से व्यक्ति , संस्था या परिस्थिति का अध्ययन हो जाता है । यह विधि समस्यात्मक व अपराधी बच्चों मानसिक बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों और सामाजिक समस्याओं के अध्ययन के लिए प्रयुक्त होती है । फिर भी यह विधि मनोवैज्ञानिकों की अपेक्षा मनोचिकित्सकों के लिए अधिक लाभदायी सिद्ध हुई ।
गुण-
( 1 ) इस विधि का गुण यह है कि समस्या के अध्ययन में सामान्यी करण निकाला जा सकता है या कम से कम निष्कर्ष की परिकल्पना बनायी जा सकती है ।
( 2 ) इस विधि से समस्यागत जानकारी अधिक हो सकती है।
दोष -
( 1 ) इससे विश्वसनीय और वैज्ञानिक निष्कर्ष नहीं निकाले जा सकते हैं ।
( 2 ) इसमें अपने विषय में पक्षपात हो सकता है। आत्मकथा लिखने वाले व्यक्तियों में विरले ही ऐसे होते हैं जो अपने विषय में तटस्थ भाव से सही विश्लेषण कर सके।
( 3 ) स्मृतियों के आधार पर सभी घटनाओं का उल्लेख सम्भव नहीं होता है । मनुष्य प्रायः सुखद घटनाओं को याद रखता है और दुखद घटनाओं को भुलाना चाहता है । फिर भी क्रो महोदय का विश्वास है कि यदि अभिवावक और पुत्रियों अपने जीवन की डायरी तैयार करने को कहें तो चरित्र निर्माण में सहायता मिल सकती है ।
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