क्रियाप्रसूत / नैमित्तिक अनुबंधन (Operant/ Instrumental Conditioning)
सभी प्राणी दो प्रकार का व्यवहार करते है ऐच्छिक तथा अनैच्छिक । यदि आंधी के कारण आंख बंद होती है, खुलती है तो वह प्रतिवर्ती तथा अनैच्छिक व्यवहार है किन्तु आंख में कुछ गिर जाने पर यदि हम आंख को बंद करते है. खोलते है तो वह ऐच्छिक व्यवहार का उदाहरण होगा। प्राचीन अनुबंधन एक प्रकार का अधिगम है जो प्रतिवर्ती तथा अनैच्छिक व्यवहार के अधिगम को बताता है। नैमित्तिक / क्रियाप्रसूत अनुबंधन ऐच्छिक व्यवहार के अधिगम को स्पष्ट करता है। ऐच्छिक अनुक्रियाएं प्राणी द्वारा अपने वातावरण में सक्रिय होने पर होती है, ऐच्छिक रूप से प्रकट होती है और प्राणी के नियंत्रण में रहती है। स्किनर ने इसे क्रियाप्रसूत (operant) कहा और क्रिया प्रसूत व्यवहार का अनुबंधन क्रियाप्रसूत अनुबंधन (operant conditioning) कहा गया।
क्रियाप्रसूत अनुबंधन को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting operant conditioning)
नैमित्तिक / क्रियाप्रसूत अनुबंधन में अनुक्रिया (व्यवहार) परिणाम पर आधारित होती है। ऐसे परिणाम को पुनर्बलन (reinforcement) कहते है। पुनर्बलन ऐसी कोई भी घटना या उद्दीपक है जो किसी वांछित अनुक्रिया के घटित होने की संभावना को बढ़ाता है। पुनर्बलन की विशेषताएं अनुक्रिया की दिशा तथा मजबूती को प्रभावित करती है। पुनर्बलन के प्रकार, संख्या, अनुसूची, गुणवत्ता इत्यादि विशेषताएं क्रियाप्रसूत अनुबंधन को निर्धारित करती है। अनुक्रिया के घटित होने व पुनर्बलन के मध्य समयांतराल, अनुबंधित की जाने वाली अनुक्रिया का स्वरूप भी एक महत्वपूर्ण कारक है जो अधिगम को प्रभावित करता है। इनमें से कुछ कारकों का विस्तृत विवरण आगे दिया गया है।
पुनर्बलन के प्रकार (types of reinforcement)
कोई भी उद्दीपक या घटना जो व्यवहार को पुनर्बलित करने के लिए उपयोग की जाती है, समान नहीं होती। ये पुनर्बलन प्राथमिक या द्वितीयक हो सकते है. धनात्मक अथवा ऋणात्मक हो सकते है। प्राथमिक पुनर्बलक (primary reinforcer) जैविक रूप से महत्वपूर्ण होता है जैसे भोजन, पानी इत्यादि। द्वितीयक पुनर्बलक (Secondary reinforcer) वह पुनर्बलक है जिसने प्राणी के अनुभव के कारण पुनर्बलक की विशेषताएं प्राप्त कर ली है। धन, प्रशंसा, श्रेणियां द्वितीयक पुनर्बलक के उदाहरण है। पुनर्बलकों के उपयोग से वांछित अनुक्रियाएं प्राप्त हो सकती है।
Positive Reinforcement
धनात्मक पुनर्बलक वे उद्दीपक होते है जिनका परिणाम सुखद होता है और जो अनुक्रिया को दृढ़ करते हैं और उसे बनाए रखते है। भोजन, पैसा, प्रशंसा इत्यादि धनात्मक पुनर्बलक के उदाहरण है।
Negative Reinforcement
ऋणात्मक पुनर्बलक अप्रिय, दुखद तथा पीडादायी होते हैं। ये पुनर्बलक प्राणी को पलायन तथा परिहार (escape and avoidance) की अनुक्रिया सिखाते है। डांट से बचने के लिए समय पर गृहकार्य करना, ठंड से बचने के लिए ऊनी कपड़े पहनना, कार्यालय में जुर्माने से बचने के लिए समय पर पहुंचना आदि ऋणात्मक पुनर्बलन के उदाहरण है। ऋणात्मक पुनर्बलन दण्ड़ से भिन्न है। ऋणात्मक पुनर्बलन में अनुक्रिया के परिणामस्वरूप दुखद उद्दीपक हटता है। दुखद उद्दीपक के हटने से प्राणी की अनुक्रिया दृढ़ होती है।
क्या दण्ड के उपयोग से अनुक्रिया की संभावना कम होती है?
दण्ड अनुक्रिया को दबाता है जबकि पुनर्बलन अनुक्रिया की संभावना बढ़ाता है। अपशब्द बोलने पर बालक की पिटाई करना, कक्षा में शोर करने पर विद्यार्थी को बेंच पर खड़ा करना दण्ड़ के उदाहरण होंगे। इन उदाहरणों में दण्ड से क्रमशः अपशब्द बोलने तथा शोर करने की अनुक्रिया कम होने की संभावना होगी।
यह ध्यान देने योग्य है कि दण्ड से कोई भी अनुक्रिया स्थाई रूप से समाप्त नहीं होती। दण्ड यदि हल्का और विलम्बित हो तो उसका प्रभाव नहीं पड़ता। दण्ड़ कठोर होने पर अवांछित व्यवहार के दमन का प्रभाव भी अधिक होगा किन्तु यह प्रभाव लम्बे समय तक नहीं होता। दैनिक जीवन में भी देखते है कि कुछ बालकों को अपशब्द बोलने पर दण्ड़ मिलता है। यदि यह दण्ड़ कम है तो बालक के व्यवहार में अंतर नहीं होता परन्तु यह दण्ड बहुत अधिक है तो कुछ समय बाद कभी-कभी पुनः वह इस व्यवहार को करता दिखाई देता है।
इस प्रकार कभी-कभी दण्ड़ चाहे जितना भी कठोर क्यों न हो इसका अनुक्रिया के दमन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसके विपरीत दण्ड़ देने वाले व्यक्ति के लिए नकारात्मक भाव (घृणा / क्रोध) विकसित हो जाते है।परिणामस्वरूप दुखद उद्दीपक हटता है। दुखद उद्दीपक के हटने से प्राणी की अनुक्रिया दृढ़ होती है।
0 टिप्पणियाँ