क्या होता है घमंड करने वालो का और क्यो नहीं करना चाहिए

घमंड करने वाले लोगों की स्थिति और इसके दुष्प्रभाव

कहते है की पैसा और पावर क्षणिक होता है। इसलिए कभी भी घमंड ना करे अगर आपके पास हो। 

घमंड से अच्छे काम और रिश्ते बिगड़ जाते हैं। प्रजापति दक्ष का नाम तो आपने सुना ही होगा, ये ब्रह्मा जी के बेटे थे और इन्होने ही सृष्टि को रचा था। एक दिन क्या हुआ की प्रजापति दक्ष के सम्मान में शिव जी नहीं उठे तो उसने शिव जी का अपमान कर दिया। जब किसी व्यक्ति के स्वभाव में घमंड आ जाता है,तो उसके अच्छे काम भी बिगड़ जाते हैं । अहंकार की वजह से व्यक्ति को सही - गलत का ध्यान नहीं रहता है, जिससे उसके बने बनाए काम भी असफल हो जाते हैं । इस बुराई को जल्दी से जल्दी छोड़ देना चाहिए । ये बात हम प्रजापति दक्ष की गलतियों से सीख सकते हैं । प्रजापति दक्ष का सभी देवताओं और बड़े - बड़े ऋषि मुनि भी सम्मान करते थे । 

एक दिन एक यज्ञ हो रहा था । यज्ञ में सभी देवी - देवता और ऋषि - मुनि बैठे हुए थे । उस समय प्रजापति दक्ष यज्ञ स्थल पर पहुंचे तो वहां बैठे सभी लोग उनके सम्मान में खड़े हो गए , लेकिन शिव जी बैठे हुए थे । शिव जी दक्ष पुत्री सती के पति थे , इस रिश्ते से दक्ष शिव जी के ससुर थे । दक्ष अहंकारी था । उसने सभी को अपने सम्मान में खड़े देखा तो वह बहुत खुश हुआ , लेकिन जैसे ही उसकी नजर शिव जी पर पड़ी तो वह क्रोधित हो गया । शिव जी आंखें बंद करके ध्यान में बैठे हुए थे । दक्ष के सम्मान में शिव जी नहीं उठे तो दक्ष ने सोचा कि ये मेरे दामाद हैं , मेरी संतान की तरह हैं । इस रिश्ते से इन्हें मेरे सम्मान में उठना चाहिए था । इतना सोचने के बाद अहंकारी  दक्ष ने शिव जी का अपमान करना शुरू कर दिया । शिव जी शांत थे। और दक्ष की बातें सुन रहे थे , लेकिन उस समय वहां मौजूद नंदीश्वर शिव जी का अपमान नहीं सहन कर पाए और उन्होंने दक्ष को शाप दे दिया । नंदीश्वर के शाप से भृगु ऋषि गुस्सा हो गए , उन्होंने नंदी को शाप दे दिया । कुछ ही देर में पूरा यज्ञ बिगड़ गया । सभी एक - दूसरे से झगड़ने लगे थे । इसको देखकर शिव वहा से चले गये। 

लेकिन दक्ष ने शिव का अपमान करने की ठान रखी थी। उन्होंने एक और यज्ञ का आयोजन किया जिसमें शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया गया था।  सती यज्ञ में जाना चाहती थीं लेकिन शिवजी ने उन्हें मना कर दिया था। उन्होंने सती से कहा- तुम्हारे पिता मुझे अपमानित करने के लिए यह यज्ञ करा रहे हैं।  तुम वहाँ मत जाओ। इससे तुम्हारा अपमान होगा और मैं तुम्हें खो दूंगा।  लेकिन सती अपने आप को रोक नहीं पाईं और चली गईं।  वहां उन्होंने दक्ष द्वारा शिव के बारे में कही गई गालियों को सुना और अपमानित महसूस किया।  सती ने कहा, जो कोई भी शिव भक्त है, यदि उसमें शक्ति है तो वह अपने भगवान की निन्दा करने वालों को दण्ड दे, अन्यथा यहाँ से चले जाओ।  तब उन्होंने दक्ष से कहा, आपने मुझे यह शरीर दिया है।  इस शरीर ने शिव का अपमान सुना है।  तो मैं इस शरीर को छोड़ देती हूँ।  यह कहकर सती ने अपने शरीर को अग्नि में छोडकर भस्म कर दिया।

यह देखकर शिवगण क्रोधित हो गए और दक्ष पर आक्रमण कर दिया, लेकिन भृगुजी ने यज्ञ की अग्नि से यज्ञ रक्षकों का निर्माण किया, जिन्होंने शिवगणों को भगा दिया।  नारद ने यह सारी घटना शिवजी को बताई।  क्रोधित महादेव ने अपने बालों में से एक बाल तोड़कर जमीन पर फेंक दिया और  वीरभद्र को प्रकट किया।  वीरभद्र शिवगणों के साथ यज्ञ-अग्नि में पहुंचे और यज्ञ-अग्नि को भस्म कर दिया।  यज्ञ में शिव का अपमान करने वालों को दण्ड मिला।  वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया।  यज्ञ के विनाश को देखकर, ऋषियों और देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु से शिव को शांत करने का अनुरोध किया।  ब्रह्मा और विष्णु देवताओं सहित शिवजी के पास गए और ब्रह्मा ने शिव से कहा, यज्ञ अधूरा रह गया है।  आपके क्रोध से संसार के विनाश की सम्भावना है।  आप शांत हो जाये ।  शिवजी यज्ञ में आए और दक्ष को एक बकरे का सिर उनके शरीर से जोड़कर पुनर्जीवित कर दिया।  अहंकार नष्ट होने के बाद दक्ष ने महादेव से क्षमा मांगी और यज्ञ पूरा किया। इस यज्ञ के दौरान महादेव की पत्नी सती शरीर छोड़ चुकी थीं। इस प्रकार दुखी होकर महादेव अनंत काल के लिए योगनिद्रा में चले गए। 

जीवन प्रबंधन 

इस घटना से संदेश मिलता है कि घमंड को जल्दी से जल्दी छोड़ देना चाहिए । जो लोग घमंड करते हैं , उन्हें कहीं भी मान - सम्मान नहीं मिलता है । अहंकार की वजह से हमारे अन्य सभी गुणों का महत्व खत्म हो जाता है । इस बुराई को जल्दी से जल्दी छोड़ दें ।

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