आत्म - निरीक्षण विधि Introspective Method

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प्राचीन काल से बहुप्रचलित यह परम्परागत विधि है । यद्यपि इसे रूप देने का प्रयास प्रसिद्ध संरचनात्मक मनोवैज्ञानिक टिचनर ने किया था फिर भी इसके वैज्ञानिक होने में बहुत से विद्वान सन्देह करते हैं । इस विधि का आशय ' अपने को अन्दर देखना ' ( To look within oneself ) है । इस विधि में मनुष्य अपने को अर्थात् अपनी मानसिक स्थितियों को ध्यान से देखता है । इस प्रकार के ध्यान से देखने के तीन रूप हो सकते हैं :

( 1 ) बाह्य वस्तु के प्रत्यक्षण के परिणाम स्वरूप अपनी मानसिक प्रक्रियाओं का अवलोकन व विश्लेषण |

( 2 ) अपने स्वतःस्फूर्त ( Spontaneous ) कार्यों और व्यवहारों के समय मानसिक दशाओं का अवलोकन |

 ( 3 ) अपनी मानसिक अनुक्रियाओं को शान्त या परिवर्तित करने का प्रयास। 

स्टाउट का कथन है To introspect to attend to the working of one's own mind in a systematic way . " अपने मन की क्रिया - विधि को व्यवस्थित रूप से समझना ही अन्तर्दर्शन है । यह विधि सर्वथा विश्वसनीय और वैज्ञानिक तो नहीं है फिर भी व्यक्ति की मनोदशा का स्वरूप उस व्यक्ति के अतिरिक्त कोई वस्तुगत विधि नहीं जान सकती है । पुत्र वियोग से दुखी व्यक्ति स्वयं ही जान सकता है कि उसके मन में क्या घटित हो रहा है । दूसरे को मनोदशा का अन्दाज ही लगाया जा सकता है , शुद्ध ज्ञान नहीं प्राप्त किया जा सकता है । भारत में पतंजलि की योग विधि आत्म - निरीक्षण का सर्वोत्तम साधन सिद्ध किया जा चुका है । आत्मा और अनेक दशाओं के ज्ञान के लिए ध्यान आवश्यक है । " योगः चित्तवृत्ति निरोधः " के आधार पर योगी मन और मन के परे आत्मा को जानने में सफल हुए हैं । 

पाश्चात्य मनोविज्ञान इस विधि से अभी अवगत नहीं है फिर भी इस विधि के सर्वमान्य गुण इस प्रकार हैं : 

( 1 ) इस विधि से जिज्ञासु अपने को सच्चे रूप में जान सकता है । 

( 2 ) इसमें प्रयोगकर्ता को कोई उपकरण नहीं जुटाने पड़ते हैं और किसी देश काल में इसे प्रयुक्त किया जा सकता है । 

( 3 ) दूसरे के मनोभावों को जानने के लिए तुलना के आधार पर मात्र इस विधि के अतिरिक्त अन्य कोई साधन नहीं है । 

 ( 4 ) समय और सामग्री की दृष्टि से यह विधि सहज और सस्ती है । रॉस ने ठीक कहा है कि " मनोवैज्ञानिक का स्वयं का मस्तिष्क प्रयोगशाला होता है और चूंकि यह सदैव साथ रहता है इसलिए वह अपनी इच्छानुसार किसी भी समय निरीक्षण कर सकता है । "

 ( 5 ) यह विधि अन्य विधियों से प्राप्त परिणामों की व्याख्या करने में सहायक होती है । फिर भी यह विधि सर्वथा निर्दोष और सरल नहीं है । इसकी भी कुछ कठिनाइयाँ हैं । 


कठिनाइयाँ और दोष-

 ( 1 ) इस विधि से दूसरे व्यक्ति की मनोदशा को गणितीय शुद्धता के साथ नहीं जाना जा सकता है । यही कारण है कि इसे वैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता है । डगलस के अनुसार , " अब यह विधि विज्ञान के रूप में अपना सम्मान खो चुकी है। " 

( 2 ) मन के द्वारा मन का निरीक्षण असम्भव नहीं तो कठिन है । किसी भी अनुभव में चेतना को ज्ञाता और ज्ञेय में विभाजित करना कठिन है । क्रोध की चेतना और क्रोध में कोई अन्तर करना असम्भव लगता है । जैसे मैं स्वप्न देख रहा हूँ ' और ' मैं स्वप्न का स्वप्न देख रहा हूँ में वस्तुतः कोई अन्तर नहीं है । टिचनर महोदय ने भी स्वीकार किया है कि हमारी " मानसिक प्रक्रियाएँ क्षणिक , पकड़ में न आने वाली और फिसलने वाली हो सकती है " यद्यपि वह स्वयं अन्तनिरीक्षण के समर्थक थे । फिर भी कुछ विद्वानों का मत है कि ' अभ्यास ' और ' पुननिरीक्षण से इस कठिनाई को दूर किया जा सकता है । 

( 3 ) मानसिक प्रक्रियाएँ दुरूह , जटिल , अस्पष्ट और अनिश्चित होती हैं अतः इन्हें भौतिक वस्तु की तरह नहीं देखा जा सकता है ।

( 4 ) अन्तनिरीक्षण द्वारा प्राप्त ज्ञान वैयक्तिक होने के कारण सर्वमान्य नहीं ठहराया जा सकता है । एक ही मानसिक दशा ( जैसे भय ) के निरीक्षण में दोनो मनो वैज्ञानिक एक ही तथ्य  नहीं दे सकते है। 


( 5 ) पागल , मानसिक रूप से विकृत , मन्द बुद्धि और बालक अन्तनिरीक्षण नहीं कर सकते हैं । 


( 6 ) अन्तनिरीक्षण का महान तथ्य यह है कि जब हम किसी तथ्य को ध्यान में पकडना चाहते हैं तो वह तत्काल ओझल होने लगता है । क्रोध के समय यदि कोई उसे पकड़ने का प्रयास करने लगे तो उसका क्रोध ठंडा हो जाता है । सच तो यह है कि अन्तनिरीक्षण बजाय किसी मनोवृत्ति को पकड़ने के उसे शान्त करने का तरीका बन जाता है । इसीलिए जेम्स ने ठीक ही कहा है कि " अन्तनिरीक्षण द्वारा विश्लेषण का प्रयत्न मानो किसी व्यक्ति द्वारा गैस को शीघ्रता से जला देना है ताकि यह जाना जा सके कि अंधेरा कैसा है । " रॉसने ठीक ही कहा है कि " अन्तनिरीक्षण में यह दुर्भाग्य पूर्ण रूप से सच है कि जितनी ही अधिक सामग्री होती है उतनी ही कम शक्ति इसके निरीक्षण के लिए रह जाती है । " ( In introspection it is unfortunately true that the more material there is , the less power there is to observe it . )

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